होम / करेंट अफेयर्स
सिविल कानून
प्रशिक्षु को कर्मकार नहीं माना जा सकता
« »31-Aug-2023
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम श्री नरेंद्र सिंह शेखावत एवं अन्य और अन्य संबंधित याचिकाएँ "शिक्षु अधिनियम, 1961 के तहत किसी विवाद को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के दायरे में 'औद्योगिक विवाद' नहीं कहा जा सकता है।" न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड |
स्रोत: राजस्थान उच्च न्यायालय (सिविल रिट याचिका संख्या 8182/2005)
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड की पीठ ने कहा कि शिक्षु अधिनियम, 1961 (1961 का अधिनियम) के तहत किसी विवाद को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (1947 का अधिनियम) के दायरे में 'औद्योगिक विवाद' नहीं कहा जा सकता है।
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम श्री नरेंद्र सिंह शेखावत एवं अन्य और अन्य संबंधित याचिकाओं के मामले में यह टिप्पणी की।
पृष्ठभूमि
- 11 महीनों के लिये दोनों पक्षों के बीच प्रशिक्षुता अनुबंध निष्पादित किया गया था और इन 11 महीनों के दौरान प्रतिवादियों को प्रशिक्षुता प्रशिक्षण प्रदान किया गया था।
- उक्त अवधि के पूरा होने के बाद, उनका अनुबंध समाप्ति आदेश (termination order) के माध्यम से समाप्त हो गया।
- इसके बाद, प्रतिवादियों ने अपने समाप्ति आदेश की वैधता को चुनौती देते हुए 1947 के औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 10 के तहत औद्योगिक न्यायाधिकरण सह श्रम न्यायालय, जयपुर के समक्ष एक औद्योगिक विवाद उठाया।
- इस न्यायाधिकरण ने विवाद को औद्योगिक विवाद मानते हुए और उन्हें 1947 के औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत कर्मकार मानते हुए प्रतिवादियों के पक्ष में आदेश पारित किया और इसलिये, समाप्ति (Termination) को अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन माना।
- याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की और कहा कि इस विवाद को औद्योगिक विवाद नहीं माना जा सकता है।
- और कहा, प्रतिवादी कर्मकार की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आते हैं, इसलिये श्रम न्यायालय के पास प्रतिवादियों द्वारा दायर दावा याचिका पर विचार करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
- शिक्षु अधिनियम, 1961 की धारा 18 के अनुसार श्रम कानून के प्रावधान लागू नहीं होते हैं।
न्यायालय की टिप्पणी
- उच्च न्यायालय ने मुख्य रूप से कहा कि प्रशिक्षुओं के विवाद के मामले में, औद्योगिक विवाद न्यायाधिकरण द्वारा दिया गया पंचाट (Award) अवैध और अधिकार क्षेत्र रहित है।
औद्योगिक विवाद
- औद्योगिक विवाद ऐसे टकराव या संघर्ष होते हैं जो नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच उत्पन्न होते हैं, जो अक्सर हितों, विचारों में अंतर या अधिकारों के कथित उल्लंघन के कारण उत्पन्न होते हैं।
- इन विवादों में शामिल दोनों पक्षों और अर्थव्यवस्था के समग्र कामकाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं।
- औद्योगिक विवादों के परिणामस्वरूप मुकदमे और न्यायालय के आदेश जैसी कानूनी कार्रवाइयाँ हो सकती हैं।
- इस कारण से, इसमें शामिल सभी पक्षों के लिये अतिरिक्त लागत और जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं।
- ये विवाद औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत शासित होते हैं और इनका निर्णय श्रम न्यायालय/औद्योगिक न्यायाधिकरण द्वारा किया जाता है।
- औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 2(k) औद्योगिक विवाद को परिभाषित करती है।
कर्मकार (Workman)
- औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत, 'कर्मकार' का तात्पर्य किसी उद्योग में कार्यरत किसी भी व्यक्ति से है, चाहे वह कुशल या अकुशल, मैनुअल या लिपिक, तकनीकी या गैर-तकनीकी हो।
- कर्मकार में कारखाने के श्रमिकों और मजदूरों से लेकर प्रशासनिक कर्मचारियों तक विविध प्रकार के व्यक्ति शामिल होते हैं, जो सभी एक औद्योगिक प्रतिष्ठान के कामकाज में योगदान करते हैं।
शिक्षु अधिनियम, 1961
- 1961 का यह अधिनियम भारत में कानून का एक महत्वपूर्ण अंश है जो विभिन्न उद्योगों में प्रशिक्षुता प्रशिक्षण कार्यक्रमों की रूपरेखा और कार्यान्वयन को नियंत्रित करता है।
- इस अधिनियम में 38 धाराएँ हैं जिन्हें 3 अध्यायों में विभाजित किया गया है।
- शिक्षु अधिनियम के तहत, पात्र संगठनों को व्यक्तियों को प्रशिक्षुता प्रशिक्षण प्रदान करने की आवश्यकता होती है, जिससे उन्हें अनुभवी पेशेवरों के मार्गदर्शन में व्यावहारिक ज्ञान और कौशल प्राप्त करने की अनुमति मिलती है।
- इस अधिनियम की धारा 18 प्रशिक्षुओं और श्रमिकों के बीच विभेद करती है।
कानूनी प्रावधान
शिक्षु 1961 के अधिनियम की धारा 18: शिक्षु प्रशिक्षणार्थी हैं, न कि कर्मकार -
उसके सिवाय जैसा कि इस अधिनियम में अन्यथा उपबंधित है -
(a) किसी प्रतिष्ठान में निर्दिष्ट व्यवसाय में शिक्षुता प्रशिक्षण प्राप्त करने वाला प्रत्येक शिक्षु एक प्रशिक्षणार्थी होगा न कि कर्मकार; और
(b) श्रम के संबंध में किसी भी कानून के प्रावधान ऐसे शिक्षु पर या उसके संबंध में लागू नहीं होंगे।